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Pt. Vijay Shankar Mehta

Vijay Shankar Mehta, a wealthy scholar renowned for his innovative perspectives on religion and spirituality, is recognized, acknowledged, and revered worldwide as a life mentor. Since commencing his spiritual journey in 2007, he has delivered over 5000 lectures on more than 150 topics across nearly 20 countries, including India.

Katha / Vyakhyaan / Course Booking

Apart from Shri Bhagwat Katha, Shri Ram Katha, Shri Hanumat Katha and Shiv Puran he speaks on various topics interrelating spiritualism with real aspects of an individual’s life. He has written 41 books related to Life Management. His teachings are not imaginary but rather more realistically connected to life.

Literature

Unlocking the Power of Smiling

Navigate life's challenges with resilience, compassion, and inner strength. Through a unique blend of practical wisdom and spiritual guidance, we aim to inspire personal growth and holistic well-being.

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जीने की राह

Jeene Ki Raah By Pandit Vijay Shankar Mehta Column Dainik Bhaskar
जीने की राह: सफल होने पर नाकामी का डर निकाल दें

हम सफलता को अपना और असफलता को दूसरे का घर मानकर चलते हैं। सफल हो जाते हैं तो लगता है अपने घर में रह रहे हैं, सबकुछ अपना है और जब सफलता से दूर रह जाते हैं तो वह असफलता ऐसी लगती है जैसे दूसरे का घर हो। न हम उसमें प्रवेश करें, न वह घर हम तक आए। असफलता या पराजय से हर आदमी बचना चाहता है। विचार करिएगा हार के पीछे तो हार होती ही है लेकिन, कभी-कभी जीत के पीछे भी हार होती है जिसे हम देख नहीं पाते।

जिस सफल आदमी को आप देख रहे हैं या आपके जीवन में भी सफलता आई हो उसके पीछे कितनी कोशिशें रही होंगी। कितनी ही बार आप गिरे होंगे, उठे होंगे, चले होंगे, दौड़े होंगे..। इसलिए जब सफल हों तो सबसे पहले असफलता को भूल जाएं। उसका डर दिमाग से निकाल दें। बहुत से लोग सफल होने के बाद भी इसी बात से भयभीत रहते हैं कि आज तो सफल हो गए, कल न हो पाए तो क्या होगा? यह चिंता धीरे-धीरे उस सफलता को भी खाने लगती है। आज सफल हुए हैं तो उसका आनंद लें और मानकर चलिए कि इसकी ऊर्जा से कल फिर सफल होना है।

असफलता हाथ लगने पर भी यही मानकर चलें कि यह स्थायी नहीं है। कल फिर कोई सफलता आपकी प्रतीक्षा कर रही है। यदि बहुत अधिक दूसरों के ही सहारे सफलता अर्जित की है तो फिर इसको खिसकने में भी देर नहीं लगेगी। पर यदि सबकुछ मौलिक है, आप में आत्मविश्वास है तो फिर यह सफलता स्थायी भी होगी और असफलता के भय से मुक्त भी रहेगी। 

पं. विजयशंकर मेहता का जीने की राह: बीमारी में दवा के साथ योग का भी सहारा लें

अब समय ऐसा आ गया है कि आप बीमार न हों यही काफी नहीं है। रोग या बीमारी से दूर रहना बड़ी सुखद बात है, परंतु इससे ज्यादा जरूरी है आपका आनंदित रहना। बीमार आदमी खुश नहीं रहे तो समझ में आता है कि शरीर में कोई तकलीफ है, लेकिन जो स्वस्थ हैं, जो यह घोषणा करते हैं कि हमें कोई बीमारी नहीं है वो भी भीतर से खुश नज़र नहीं आते। बीमारी और आनंद बिल्कुल अलग-अलग मामला है।

जब आप बीमार होते हैं तो मेडिकल साइंस के भरोसे हो जाते हैं। मेडिकल साइंस कहता है आपको बीमारी का कांटा लगा है तो हम वह कांटा निकाल देते हैं लेकिन, ध्यान रखिए, बीमारी के समय दवा के साथ-साथ योग का सहारा भी जरूर लें, क्योंकि दवाएं कहेंगी बीमारी का कांटा लगने पर हम काम आएंगी, योग कहेगा हम कांटा लगने ही नहीं देंगे।

जैसे ही आप योग करते हैं, साधारण भाषा में उसे कहेंगे बिना धुन के नाचना। ऐसा कहते हैं कि नाचने के लिए कोई न कोई धुन चाहिए। जरूरी भी है, लेकिन यह भी सही है कि बिना धुन के भी नाचा जा सकता है। उस समय की जो मस्ती आपके भीतर उतरती है वो फिर बनी ही रहती है और उसी का नाम है जीवन।

जन्म तो मनुष्य का ले लिया, मौत भी मनुष्य की तरह हो जाएगी और ये दोनों काम पशु के साथ भी होते हैं, पर यह स्वतंत्रता मनुष्य को ही है कि वह हर स्थिति में अपने जीवन को बचा सकता है, प्रसन्नता के साथ जी सकता है। इसलिए तमाम व्यस्तताओं के बाद चौबीस घंटे में कुछ समय योग के लिए जरूर निकालिए।

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